सामाजिक कार्यकर्ता सह रांची विश्वविद्यालय के अर्थशास्त्र विभाग के विजिटिंग प्रोफेसर ज्यां द्रेज ने झारखंड में स्कूलों के बंद रहने से प्रभावित बच्चों के लिए महा साक्षरता अभियान चलाने का सुझाव दिया है। उन्होंने कहा है कि झारखंड में सबसे अधिक समय से प्राइमरी स्कूल बंद हैं, जिसका पूरी तरह असर गरीब बच्चों की शिक्षा पर पड़ा है। Economist Jean Drezes advice अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज ने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को पत्र लिखकर प्राइमरी में पढ़नेवाले बच्चों के लिए महासाक्षरता अभियान चलाने की सलाह दी है। कहा है कि कोरोना के कारण झारखंड में लंबे समय से स्कूल बंद हैं।
प्रो ज्यां द्रेज ने कहा कि जब सब कुछ चालू है तो स्कूल क्यों बंद है. बड़े लोगों के बच्चे ऑनलाइन पढ़ाई कर रहे हैं. सरकार गरीब के बच्चों को अनपढ़ बना कर रखना चाहती है. उन्होंने कहा कि झारखंड की जनता स्कूल खोलना चाहती है, तो सरकार स्कूल खोलने पर विचार क्यों नहीं कर रही है.
आखिर कौन है प्रोफेसर ज्यां द्रेज
ज्यां द्रेज भारत में कार्यरत सामाजिक कार्यकर्ता और अर्थशास्त्री हैं। भारत में उनके प्रमुख कार्यों में भूख, अकाल, लिंग असमानता, बाल स्वास्थ्य और शिक्षा जैसे मुद्दे शामिल हैं। डॉ. ज्यां द्रेज़ की अर्थशास्त्र पर बारह पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। अमर्त्य सेन के साथ मिलकर भी उन्होंने कई पुस्तकें लिखी हैं। ज्यां द्रेज़ को “नरेगा का आर्किटेक्ट” कहा जाता है।
बच्चों के बेहतर भविष्य के लिए दिया ये सुझाव
उन्होंने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को पत्र लिखकर कहा की झारखंड में सबसे अधिक समय यानि की करीब दो साल से प्राइमरी स्कूल बंद हैं, जिसका पूरी तरह असर गरीब बच्चों की शिक्षा पर पड़ा है। कोरोना संक्रमित होने के कारण उन्होंने आयोजित बजट गोष्ठी में शामिल नहीं होेने की जानकारी देते हुए मेल से बच्चों की शिक्षा की बेहतरी के लिए आवश्यक सुझाव दिए।
ज्यां द्रेज ने एक सर्वे रिपोर्ट का दिया है हवाला
ज्यां द्रेज ने एक सर्वे रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि वर्ष 2011 की जनगणना रिपोर्ट में आठ से 12 वर्ष के बच्चों की साक्षरता दर 90 प्रतिशत से अधिक थी, लेकिन अब बच्चे एक वाक्य भी नहीं पढ़ पा रहे हैं। उन्होंने कहा कि स्कूलों के बंद रहने के कारण आनलाइन कक्षाएं चलाई तो जा रही हैं, लेकिन बड़ी संख्या में गरीब बच्चों को उसका लाभ नहीं मिल रहा है।
तमिलनाडु में चलाए गए अभियान को लागू करने की सलाह
उन्होंने तमिलनाडु में चलाए गए अभियान को भी झारखंड में लागू करने पर विचार करने का सुझाव दिया जिसके तहत स्थानीय शिक्षित युवाओं खासकर महिलाओं, आदिवासियों एवं दलितों के माध्यम से बच्चों को पढ़ाया गया। उनके अनुसार, इसपर बहुत कम खर्च होगा तथा स्थानीय लोगों को आय भी प्राप्त होगा।
करीब दो साल से ज्यादा समय से स्कूल-कॉलेज बंद हैं। इस दौरान ऑफलाइन कक्षाएं और पठन-पाठन सब ठप है। जैसे ही कोरोना की दूसरी लहर का असर कम हुआ था, सब कुछ धीरे-धीरे लय में लौट रहा था। हालांकि तीसरी लहर की वजह से फिर से पढ़ाई लगभग ठप हो गई है। इस बीच ऑनलाइन क्लास को लेकर छात्र परेशान हैं। इसके अलावा कई छात्र ऐसे भी हैं, जो रोजाना ऑनलाइन क्लास लेने में सक्षम नहीं हैं या उनके पास संसाधन नहीं हैं। कई छात्र ऑनलाइन कक्षाओं के लिए आवश्यक गैजेट पाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। इसका सबसे ज्यादा असर उन गरीब और ग्रामीण क्षेत्र से आने वाले छात्रों पर देखने को मिल रहा है, जिनके घर में शिक्षा का माहौल नहीं है।