हमारा देश विभिन्न संस्कृतियों परम्पराओं और त्योहारों के लिए प्रसिद्ध है. अंग्रेजी कैलेंडर की तरफ से देखें तो यह इस साल का पहल पर्व होगा जो देश के विभिन्न हिस्से में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है. उत्तर भारत में मकर संक्रांति, दक्षिण भारत में पोंगल, पश्चिम भारत में लोहड़ी तो पूर्वोत्तर भारत में बीहू पर्व की धूम रहती है। झारखंड में इसी पर्व को टुसू पर्व के रूप में मनाया जाता है। उत्तरप्रदेश और बिहार में यह खिचड़ी या माघी पर्व के नाम से प्रसिद्ध है। चारों ही त्योहार मकर संक्रांति के आसपास ही आते हैं।
मकर संक्रांति का त्योहार हर साल 14 जनवरी को यानी आज पूरे देश में मनाया जा रहा है. दरअसल मकर संक्रांति एक ऐसा दिन है, जब धरती पर एक अच्छे और शुभ दिन की शुरुआत होती है. ऐसा इसलिए कि सूर्य दक्षिण के बजाय अब उत्तर को गमन करने लग जाता है. जब तक सूर्य पूर्व से दक्षिण की ओर गमन करता है तब तक उसकी किरणों का असर खराब माना गया है, लेकिन जब वह पूर्व से उत्तर की ओर गमन करते लगता है तब उसकी किरणें सेहत ,सुख और शांति को बढ़ाती हैं. इस खास दिन पर लोग कामना करते हुए सूर्य को अर्घ्य देते हैं, भोग लगाते है जिसमे चावल, दाल, गुड़, मटर, रेवड़ी चढ़ाते हैं. क्योंकि यह काफी शुभ माना जाता है. इस दिन लोग पतंग उड़ाते हैं.
भारत के अलग-अलग राज्यों में इस नाम से मनाई जाती है मकर संक्रांति
झारखंड में टुसू पर्व
टुसू पर्व झारखंड के पंचपरगना का सबसे महत्वपूर्ण पर्व है। यह जाड़ों में फसल कटने के बाद 15 दिसंबर से लेकर मकर संक्रांति तक लगभग एक महीने तक मनाया जाता है। टूसू का शाब्दिक अर्थ कुंवारी है। वैसे तो झारखंड के सभी पर्व-त्योहार प्रकृति से जुड़े हुए हैं, लेकिन टुसू पर्व का महत्व कुछ और ही है। यह पर्व झारखंड के अलावा पश्चिम बंगाल के पुरुलिया, मिदनापुर व बांकुड़ा जिलों, ओडिशा के क्योंझर, मयूरभंज, बारीपदा जिलों में मनाया जाता है। इस उत्सव को अगहन संक्रांति (15 दिसंबर) से लेकर मकर संक्रांति (14 जनवरी) तक इसे कुंवारी कन्याओं के द्वारा टुसू पूजन के रूप में मनाया जाता है। घर की कुंवारी कन्याएं प्रतिदिन संध्या समय में टुसू की पूजा करती हैं। झारखंड में 13 जनवरी को लोग बाउंड़ी मनाते हैं. नए धान की पूजा । 14 को टुसू विसर्जन । आखाइन जात्रा. पीठा परब. ‘ डिगदा डिगदा मोकोर पोरोबे, छांका पीठार गोरोबे ‘ गीत गा क्र लोग इस पर्व को मानते है.
दक्षिण भारत में पोंगल
दक्षिण भारत में मनाया जाने वाला एक प्रमुख पर्व है। पोंगल का वास्तविक अर्थ होता है उबालना। वैसे इसका दूसरा अर्थ नया साल भी है। गुड़ और चावल उबालकर सूर्य को चढ़ाए जाने वाले प्रसाद का नाम ही पोंगल है। चार दिनों तक चलने वाले इस पर्व के चार पोंगल होते हैं। पूर्णतया प्रकृति को समर्पित यह त्योहार फसलों की कटाई के बाद आदि काल से मनाया जा रहा है। नए धान का चावल निकाल कर उसका भोग बनाकर, बैलों को एवं घरों को साफ़ सुथरा करके उन्हें सजाकर, भैया दूज की तरह भाइयों के लिए बहनों द्वारा लंबी आयु के लिए प्रार्थना करने की प्रथा ठीक उस प्रकार है जैसी उत्तर भारत में मनाये जाने वाले पर्वों में होती है जैसे छठ, भैया दूज एवं गोवर्धन की पूजा. पोंगल क्रमश चार तरह के होते है : – भोगी पोंगल, सूर्य पोंगल, महू पोंगल और कन्या पोंगल पहले दिन भोगी पोंगल में इन्द्रदेव की पूजा की जाती है।
पंजाब में लोहड़ी
13 जनवरी को पंजाब व हरियाणा समेत उत्तर भारत के कई बड़े क्षेत्रों में लोहड़ी का त्योहार बहुत ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है। लोहड़ी के दिन दोस्तों और रिश्तेदारों को बधाइयां और मिठाई भेजे जाती हैइस त्योहार को मनाने के लिए खुली जगह पर आग लगाई जाती है और नृत्य करते हुए गीत गाए जाते हैं और फिर पवित्र अग्नि में मूंगफली, गजक, तिल आदि डालकर परिक्रमा की जाती है।लोहड़ी का पर्व पारंपरिक तौर पर फलल की कटाई और नई फसल के बुआई से जुड़ा हुआ है। लोहड़ी की अग्नि में रवि की फसल के तौर पर तिल, रेवड़ी, मूंगफली, गुड़ आदि चीजें अर्पित की जाती हैं। मान्यताओं के अनुसार, इस तरह सूर्य देव व अग्नि देव के प्रति आभार व्यक्त किया जाता है.