पर्यावरण की कीमत पर राज्य में माइनर मिनरल खनन नहीं हो सकता है. हरयाली  संरक्षण के लिए माइनिंग को भी रोका जा सकता है. झारखंड वाइल्ड लाइफ  का नुकसान हुआ है और यह यह बहुत ही गंभीर मामला है. अवैध खनन को सहन नहीं किया सकता है. सरकार की पॉलिसी अब तक  नहीं आयी है. पहाड़ गायब तक हो जा रहे है. यह बात मौखिक रूप से चीफ जस्टिस डॉ रवि रंजन  और  जस्टिस सुजीत नारायण प्रसाद की खंडपीठ ने शुक्रवार को कही. झारखंड हाइकोर्ट में अवैध खनन पहाड़ों के गायब होने, जंगलों में जीव-जंतुओं की कमी और पर्यावरण को लेकर दायर विभिन्न पीआइएल पर वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से सुनवाई हो रही थी.

अवैध माइनिंग पर पूरी रोक लगाने का निर्देश : 

हाइकोर्ट ने पूछा कि सरकार की कार्रवाई के बाद कितने पहाड़ बचाये गये है. झारखंड के सारे मिनरल्स निकाल कर बेच देंगे, तो न जंगल बचेगा, न जल रहेगा और न  ही जलवायु बचेगी. जल, जंगल व जलवायु नहीं रहेगा, तो मनुष्य कैसे रहेंगे . खंडपीठ ने सरकार को अवैध माइनिंग पर पूरी रोक लगाने का निर्देश दिया. साथ ही कहा कि सरकार शपथ पत्र दायर कर बताये कि राज्य में अवैध माइनिंग बंद है. कोर्ट को पता चलता है कि माइनिंग हो रही है, तो सख्त आदेश पारित किया जायेगा . 

सरकार ने कहा हो रही है लगातार कार्रवाई

इससे पूर्व राज्य सरकार की ओर से महाधिवक्ता राजीव रंजन और अधिवक्ता पीएस पति ने पक्ष रखा.  उन्होंने कहा कि राज्य सरकार लगातार कार्रवाई कर रही है. अवैध खनन को रोकने की दिशा में ठोस कदम उठाये गये है. अधिवक्ता इंद्रजीत  सिन्हा ने सरकार की रिपोर्ट का  हवाला देते हुए बताया कि वर्ष 2020 में अवैध खनन के छह हजार से अधिक मामले दर्ज किये गये थे, जबकि इस वर्ष में अब तक लगभग 650 से अधिक अवैध खनन का मामला दर्ज किया गया है. अचानक मामले कम कैसे हो गये, इस पर संदेह उत्पन्न होता है. पूर्व में हाइकोर्ट ने मामले में स्वतः संज्ञान भी लिया था.

वन विभाग के अफसरों पर जतायी नाराजगी

अधिकारियों की नींद हराम हो जानी चाहिए थी कि यहां के जंगल में बाध नहीं है. लेकिन अधिकारी सिर्फ फिलॉसफी रहें हैं . आखिर वन विभाग करता  क्या है और अधिकारियों को नींद कैस  रही है? यहां से बाल्मिकीनगर टाइगर रिजर्व में लगभग 35 बाघ है, उनको कॉलर लगाया गया है और उनकी ट्रैकिंग होती है, वहीं झारखंड के अधिकारी पांच  बाघ बता रहे हैं, लेकिन पता नहीं है कि बाघ कहां गये. यह बात चं चीफ जस्टिस डॉ रवि रंजन व जस्टिस सुजीत नारायण प्रसाद की खंडपीठ ने अधिकारियों के जवाब पर मौखिक रूप से कही. हाइकोर्ट ने बालूमाथ के जंगलों में हाथियों के बच्चों की मौत को लेकर स्वत: संज्ञान से दर्ज पीआइएल पर सुनवाई की.

हाइकोर्ट ने कहा

• हरियाली संरक्षण के लिए माइनिंग को रोका जा सकता है

● अवैध खनन रोककर कितने पहाड़ बचाये गये

● कोडरमा में माइका खनन बंद फिर भी माइका एक्सपोर्ट होती है

● राज्य में अवैध माइनिंग को सहन नहीं किया जा सकता

“अवैध रेत खनन में लिप्त लोगों द्वारा भुगतान किए जाने वाले मुआवजे/जुर्माने को अवैध रूप से खनन किए गए खनिजों के मूल्य तक सीमित नहीं किया जा सकता है। ये लागत पर्यावरण की बहाली के जुर्माने के साथ-साथ पारिस्थितिक सेवाओं के मुआवजे का हिस्सा होनी चाहिए। “प्रदूषक भुगतान करता है” सिद्धांत जैसा कि इस न्यायालय द्वारा व्याख्या की गई है, का अर्थ है कि पर्यावरण को नुकसान के लिए पूर्ण दायित्व न केवल प्रदूषण के शिकार लोगों को क्षतिपूर्ति करने के लिए बल्कि पर्यावरणीय गिरावट को बहाल करने की लागत को भी बढ़ाता है। क्षतिग्रस्त पर्यावरण का उपचार “टिकाऊ विकास” की प्रक्रिया का हिस्सा है और इस तरह प्रदूषक व्यक्तिगत पीड़ितों को मुआवजे का भुगतान करने के साथ-साथ क्षतिग्रस्त पारिस्थितिकी को उलटने की लागत का भुगतान करने के लिए उत्तरदायी है।”

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