सुमी सुकन्या दत्ता

विश्व स्वास्थ्य संगठन की ओर से मंगलवार को जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर भारत में हाई बीपी से पीड़ित आधे लोग इसे कंट्रोल कर लें तो 2040 तक भारत में लगभग 46 लाख मौतों को रोका जा सकता है.

हाई ब्लड प्रेशर के ग्लोबल प्रभाव पर विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की पहली रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि हाई सिस्टोलिक दबाव की वजह से होने वाली हृदय संबंधित बीमारियों के कारण 2019 में 13 लाख से अधिक भारतीयों की मृत्यु हो गई.

मंगलवार को जारी रिपोर्ट जिसका शीर्षक ‘ग्लोबल रिपोर्ट ऑन हाइपरटेंशन: द रेस अगेंस्ट ए साइलेंट किलर’ है, में यह भी कहा गया है कि 30-79 वर्ष की उम्र के लगभग 188.3 मिलियन लोग — देश की कुल आबादी का 31 प्रतिशत — इस स्थिति के साथ जी रहे हैं. इसके अलावा, इसमें कहा गया है कि केवल 37 प्रतिशत भारतीयों को समय पर इस स्थिति का पता चलता है, लेकिन इससे भी कम लगभग 30 प्रतिशत को इलाज मिल पाता है.

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि यदि 30-79 वर्ष आयु वर्ग के हाई ब्लड प्रेशर से पीड़ित लगभग आधे लोग अगर इसे कंट्रोल कर लें तो भारत में 2040 तक लगभग 4.6 मिलियन मौतों को रोका जा सकता है. कुल मिलाकर, इसमें कहा गया है, लगभग पांच में से चार लोगों का ठीक से इलाज नहीं किया जाता, लेकिन अगर देश इसकी कवरेज बढ़ा दे तो, 2023 और 2050 के बीच संभावित 76 मिलियन मौतों को रोका जा सकता है. इसके अलावा, हाई बीपी जो स्ट्रोक, दिल के दौरे, हर्ट फेलियर, गुर्दे खराब होना और कई अन्य स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बनता है, दुनिया भर में तीन वयस्कों में से एक को प्रभावित करता है.

ग्लोबल लेवल पर हाई बीपी (140/90 mmHg या इससे अधिक बीपी या हाई बीपी के लिए दवा लेने वाले) से पीड़ित लोगों की संख्या 1990 और 2019 के बीच दोगुनी होकर 650 मिलियन से 1.3 बिलियन हो गई है. इसमें कहा गया है कि वैश्विक स्तर पर हाई ब्लड प्रेशर से पीड़ित लगभग आधे लोग वर्तमान में अपनी स्थिति से अनजान हैं और हाई बीपी से पीड़ित तीन-चौथाई से अधिक वयस्क निम्न और मध्यम आय वाले देशों में रहते हैं.

रिपोर्ट संयुक्त राष्ट्र महासभा के 78वें सत्र के दौरान जारी की गई थी, जो संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्यों की प्रगति को संबोधित करती है, जिसमें महामारी की तैयारी, प्रतिक्रिया पर स्वास्थ्य लक्ष्य, तपेदिक (टीबी) को समाप्त करना और सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज प्राप्त करना शामिल है.

हालांकि, इस रिपोर्ट में भारत में हाई बीपी का अनुमान भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद द्वारा किए गए और इस साल की शुरुआत में द लांसेट में प्रकाशित एक राष्ट्रव्यापी सर्वे से कम है. सर्वे से पता चला था कि 35.5 प्रतिशत भारतीय आबादी हाई बीपी से ग्रस्त है.

कारण और समाधान

अधिक उम्र और आनुवंशिकी के कारण हाई ब्लड प्रेशर होने का खतरा बढ़ सकता है, तेज़ नमक वाला भोजन करना, शारीरिक रूप से सक्रिय न होना, बहुत अधिक शराब पीने जैसे परिवर्तनीय जोखिम कारक इस स्थिति के विकसित होने के जोखिम को काफी बढ़ा सकते हैं.

डब्ल्यूएचओ के महानिदेशक टैड्रोस ऐडरेनॉम घेबरेयेसस ने रिपोर्ट की प्रस्तावना में कहा, “सरल, कम लागत वाली दवाओं से हाई बीपी को प्रभावी ढंग से कंट्रोल किया जा सकता है और फिर भी उच्च रक्तचाप वाले पांच में से केवल एक व्यक्ति ने ही इसे नियंत्रित किया है.”

उन्होंने कहा, “हाई बीपी कंट्रोल प्रोग्राम उपेक्षित, कम प्राथमिकता वाले और बेहद कम वित्त पोषित हैं. उच्च रक्तचाप नियंत्रण को मजबूत करना प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल की नींव पर निर्मित अच्छी तरह से कार्यशील, न्यायसंगत और लचीली स्वास्थ्य प्रणालियों के आधार पर सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज की दिशा में हर देश की यात्रा का हिस्सा होना चाहिए.”

डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट में कहा गया है कि हालांकि, हाई बीपी के लिए राष्ट्रीय लक्ष्य, नमक की खपत का लक्ष्य और हाई बीपी के प्रबंधन के लिए दिशानिर्देश, नियमित आधार पर मृत्यु दर पर कारण-विशिष्ट विश्वसनीय डेटा उत्पन्न करने के लिए कोई कार्य प्रणाली नहीं है. रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि 22 प्रतिशत भारतीय आबादी में गैर-संचारी रोगों के कारण समय से पहले मौत का खतरा है.

     (‘दिप्रिंट’ से साभार )

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