ललित मौर्या

आज जिस तरह से दुनिया भर में जंक फूड का चलन बढ़ रहा है वो अपने साथ अनिगिनत बीमारियों को भी दावत दे रहा है। यह खाद्य पदार्थ खाने में तो स्वादिष्ठ लग सकते हैं लेकिन स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से ठीक नहीं होते। हालांकि खाद्य कंपनियां अपने उत्पादों को बेचने और ज्यादा मुनाफे की चाह में इन खाद्य पदार्थों के प्रचार या मार्केटिंग के लिए तरह-तरह की लोकलुभावन और आक्रामक नीतियां अपनाती हैं, जिसके जाल में बच्चे आसानी से फंस जाते हैं।

 

यही वजह है कि बच्चों को इन खाद्य कंपनियों के मायाजाल और लुभावने प्रचार और मार्केटिंग के हानिकारक प्रभावों से बचाने के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने नए दिशानिर्देश जारी किए हैं।

इनका मकसद जंक फ़ूड से जुड़े आक्रामक प्रचार को रोकने के लिए नीतियां बनाने में मदद करना है। इन दिशानिर्देशों में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने सभी देशों से सिफारिश की है कि वो सभी आयु वर्ग के बच्चों को उन खाद्य और पेय पदार्थों के प्रचार और मार्केटिंग से बचाने के लिए व्यापक और अनिवार्य तौर पर नीतियां लागू करे, जिनमें संतृप्त वसा, ट्रांस फैट, चीनी या नमक की मात्रा कहीं ज्यादा होती है।

 

ट्रांस फैट या ट्रांस फैटी ऐसिड को खाद्य उत्पादों में वसा का सबसे खराब रूप माना जाता है, जिसके अत्यधिक सेवन से हृदय रोग का जोखिम बढ़ जाता है। डब्ल्यूएचओ की ओर से जारी प्रेस नोट में न्यूट्रिशन और फूड सेफ्टी विभाग के निदेशक फ्रांसेस्को ब्रेन्का ने आगाह किया है कि वसायुक्त, चीनी और नमक से भरपूर खाद्य उत्पादों और पेय पदार्थों का बड़े पैमाने पर किया जाने वाला आक्रामक प्रचार बच्चों में अस्वास्थ्यकर खाने की आदतों को जन्म देता है।

ब्रेन्का के मुताबिक जिम्मेदारी के साथ प्रचार और मार्केटिंग के तौर-तरीकों को अपनाए जाने के अनुरोधों का कोई सकारात्मक असर नहीं हुआ है। ऐसे में सरकारों को इस मामले में मजबूत और व्यापक नियम बनाने चाहिए।“

 

 

गौरतलब है कि एक दशक से भी अधिक समय पहले, डब्ल्यूएचओ से जुड़े देशों ने बच्चों के लिए खाद्य उत्पादों व ऐल्कॉहॉल-रहित पेय पदार्थों के प्रचार पर केन्द्रित विश्व स्वास्थ्य संगठन की सिफारिशों का समर्थन किया था। इन सिफारिशों को मई 2010 में हुई तिरसठवीं विश्व स्वास्थ्य सभा में जारी किया गया था। लेकिन इनके बावजूद अब भी बच्चे मार्केटिंग के शक्तिशाली तौर-तरीकों से प्रभावित हो रहे हैं। जो उनके स्वास्थ्य पर बुरा असर डाल सकता है।

 

बच्चों की भोजन सम्बन्धी आदतों को प्रभावित कर सकते हैं विज्ञापन

डब्ल्यूएचओ द्वारा 03 जुलाई 2023 को जारी यह संशोधित सिफारिशें, हाल के समय में प्राप्त तथ्यों व जानकारियों की समीक्षा और उनके नतीजों पर आधारित है। इनमें मार्केटिंग से बच्चों के स्वास्थ्य, खान-पान की आदतों और भोजन के प्रति उनके रवैये पर होने वाले प्रभावों का भी आंकलन किया गया है। यह दर्शाता है कि खाद्य उत्पादों की मार्केटिंग बच्चों के स्वास्थ्य, खाने की आदतों और भोजन के प्रति उनके दृष्टिकोण को कैसे प्रभावित करता है।

संक्षेप में कहें तो वसा, चीनी और नमक से भरपूर इन खाद्य उत्पादों का आक्रामक प्रचार, सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए बड़ा खतरा है। जो बच्चों में भोजन के चयन, खाद्य पदार्थों के सेवन को प्रभावित करता है। साथ ही यह भोजन के बारे में उनकी धारणाओं को भी आकार देता है।

 

ऐसे में यह दिशानिर्देश सभी उम्र के बच्चों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए संतृप्त वसा, ट्रांस फैट, चीनी या नमक से भरपूर खाद्य उत्पादों और अल्कोहल रहित पेय पदार्थों की मार्केटिंग के लिए अनिवार्य नियमों की सिफारिश करते हैं। विश्लेषण के मुताबिक, खाद्य वस्तुओं की मार्केटिंग पर पाबन्दी लगाने वाली नीतियां तभी ज्यादा कारगर होंगी, जब वे अनिवार्य रूप से लागू की जाएं।

साथ ही जब इनमें सभी उम्र के बच्चों की सुरक्षा का ध्यान रखा जाए। यह दिशानिर्देश खाद्य पदार्थों को वर्गीकृत करने के लिए सरकार के नेतृत्व में पोषक तत्व प्रोफाइल मॉडल का उपयोग करने का भी सुझाव देते हैं, जिन्हें मार्केटिंग से प्रतिबंधित किया जाना चाहिए।

 

गाइडलाइन्स के अनुसार अन्य आयु वर्गों पर भी मार्केटिंग के कारण बढ़ते जोखिम में कमी लाने के उपायों को आजमाना फायदेमंद होगा। साथ ही प्रचार और मार्केटिंग के विभिन्न माध्यमों जैसे डिजिटल मार्केटिंग और अन्य मीडिया प्लेटफॉर्मों पर की जा रही मार्केटिंग के लिए भी व्यापक नीतियां जरूरी हैं। इसके साथ ही  कार्टून, खिलौने, गाने या अन्य तकनीकों के साथ-साथ बड़ी हस्तियों द्वारा किया जाने वाला प्रचार जो बच्चों पर गहरी छाप छोड़ता है उसपर भी लगाम कसनी होगी।

डब्ल्यूएचओ के मुताबिक इससे जुड़े नीतिगत निर्णय क्षेत्रों और राज्यों की विशिष्ट परिस्थितियों और उनके स्थानीय संदर्भों को ध्यान में रखते हुए किए जाने चाहिए। इन सिफारिशों को अपनाते समय स्थानीय स्तर पर परामर्श महत्वपूर्ण है। इसके अतिरिक्त, यह सुनिश्चित करने के लिए तंत्र मौजूद होना चाहिए कि सार्वजनिक स्वास्थ्य नीति-निर्माण किसी भी अनुचित प्रभाव से सुरक्षित है।

 

स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं जंक फ़ूड

इन दिशानिर्देशों का उद्देश्य स्वास्थ्य को बढ़ावा देने वाले खाद्य वातावरण तैयार करने में सरकारों की मदद करना है। इससे लोगों को स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से बेहतर आहार को चुनने, जीवन भर स्वस्थ खाने की आदतें विकसित करने, आहार की पोषण गुणवत्ता बढ़ाने और गैर-संचारी रोगों के बोझ को कम करने के लिए प्रोत्साहित किया जा सकेगा।

देखा जाए तो जंक या अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड भारतीय बच्चों के लिए भी बड़ी समस्या बन चुका है। यही वजह है कि सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) और डाउन टू अर्थ लम्बे समय से इसके खतरों के बारे में लोगों को जागरूक करता रहा है। इसपर सीएसई ने हाल ही में एक व्यापक अध्ययन भी किया था, जिसमें जंक फ़ूड से जुड़े खतरों के बारे में चेताया गया था।

 

इस अध्ययन के अनुसार भारत में बेचे जा रहे अधिकांश पैकेज्ड और फास्ट फूड आइटम में खतरनाक रूप से नमक और वसा की उच्च मात्रा मौजूद है, जो भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) द्वारा निर्धारित तय सीमा से बहुत ज्यादा है। सीएसई न केवल इसके खतरे से लोगों को आगाह करता रहा है। साथ ही लेबलिंग से जुड़े कानूनों को तत्काल लागु करने की भी मांग कर रहा है। जो खाद्य पदार्थ स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं उनपर अलग से लाल चेतावनी लेबल लगाने की भी मांग की थी।

देश में अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड की बिक्री को देखें तो 2005 में जहां यह 2 किलोग्राम प्रति व्यक्ति थी, वो 2019 में बढ़कर 6 किलोग्राम तक पहुंच गई है और 2024 तक उसके 8 किलोग्राम तक पहुंचने का अनुमान है।

 

हाल ही में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के डॉक्टरों ने भी जंक फूड पैकेटों के लेबलों पर शुगर, साल्ट और फैट की वैज्ञानिक सीमा से सम्बंधित जानकारी दिए जाने की मांग की थी, जिससे ग्राहकों को इनके बारे में सही जानकारी मिल सकें और वो जंक फूड को लेकर सही फैसला ले सकें।

   (‘डाउन-टू-अर्थ’ से साभार )

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