पत्रकारिता राष्ट्र निर्माण का “चौथा स्तंभ” है। आज टीवी समाचार चैनलों के 24 घंटों के प्रसारण, सोशल मीडिया (फेसबुक, ट्विटर)के होते हुए भी इसका महत्व कम नहीं हुआ है। बेशक आज पत्रकारिता के कई रूप हैं, हर भाषा में हैं। किंतु हिंदी पत्रकारिता अपनी व्यापकता, पहुंच में बहुत आगे है। 

स्वतंत्रता संग्राम और पत्रकारिता - हिंदी विवेक

 

हिंदी पत्रकारिता की शुरुआत 30 मई 1826  को पं.जुगल किशोर शुक्ल द्वारा बंगाल में की गई थी। पत्र का नाम था ‘उदंत मार्तंड ‘। आर्थिक कठिनाइयों और बंगाल  में हिंदी का प्रचलन नहीं होने के कारण लगभग डेढ़ वर्ष में ही यह बंद हो गया। लेकिन  इसने हिंदी पत्रकारिता के सूर्य  को उदित कर दिया था जो आज भी देदीप्यमान है।  

हिंदी क्षेत्र उत्तर प्रदेश से प्रकाशित होने वाला पहला साप्ताहिक हिंदी पत्र ‘बनारस अखबार ‘(1845) था जिसके संपादक थे गोविंद नाथ थंते। हिंदी पत्रकारिता के विकासक्रम में कुछ पत्रकार प्रकाशस्तंभ बने जिन्होंने अपने समय में भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराई और अनेक समाचार पत्र ने आजादी की अलख को जगाए रखने का प्रयास किया।

Hindi Patrakarita Diwas: पत्रकारिता के महत्व को बरकरार रखना है मौजूदा समय की दरकार

हिंदी साहित्य से जुड़े व्यक्तियों का भी हिंदी पत्रकारिता के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। हिंदी पत्रकारिता को समृद्ध, उन्नत व बहुमुखी बनाने में भारतेन्दु का योगदान अद्वितीय है। भारतीय नवजागरण के अग्रदूत भारतेंदु बाबू हरिश्चंद्र ने हिंदी पत्रकारिता के माध्यम से राष्ट्रीय चेतना का अंकुरण किया। भारतेंदु मंडल के वरेण्य पत्रकारों ने अपनी समर्पित सेवा-भावना के बल पर जन-चेतना को प्रस्फुटित किया। कविवचन सुधा (1867), अल्मोड़ा अखबार (1871), हिंदी दीप्ति प्रकाश (1872), बिहार बंधु (1872), सदादर्श (1874), हिंदी प्रदीप (1877), भारत मिश्र (1878), सारसुधानिधि (1879), उचितवक्ता (1880), ब्राह्मण (1883) इस काल के प्रमुख पत्र हैं।

भारत के स्वतंत्रता संग्राम का आगाज़ भले ही 1857 के विद्रोह से हुआ हो पर इस के बीज़ अलग अलग पत्र पत्रिकाओं के माध्यम से  19वीं सदी के पूर्वार्ध से ही डल  गए थे।  समाज को जागृत करके एवं स्वतंत्रता के लिए प्रेरित करने में  हिन्दी पत्रकारिता का महत्वपूर्ण योगदान रहा।

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शुरुआत में ही आर्थिक चुनौती
इस साप्ताहिक समाचार पत्र के पहले अंक की 500 कॉपियां छपी लेकिन हिंदी भाषी पाठकों की कमी के कारण उसे ज्यादा पाठक नहीं मिल पाए.  वहीं हिंदी भाषी राज्यों से दूर होने के कारण समाचार पत्र डाक द्वारा भेजना पड़ता था जो एक महंगा सौदा साबित हो रहा था. इसके लिए जुगल किशोर ने सरकार से बहुत अनुरोध किया कि वे डाक दरों में कुछ रियायत दें लेकिन ब्रिटिश सरकार इसके लिए तैयार नहीं हुई. 

वर्तमान में पत्रकारिता के तेज़ी से बदलते रूप 

वर्तमान पत्रकारिता (मीडिया) परिदृश्य अत्यंत परिवर्तनशील एवं जटिल है। अपने जन्म से ही पत्रकारिता मानव समाज का अभिन्न  है। इस ऊंचाई को प्राप्त करने के लिए मीडिया ने एक लम्बी यात्रा तय की है। प्रिंंट से शुरु होकर सोशल नेटवर्किंग साइट के अलग अलग रुपों तक पहुंचा है। आजादी से पहले, पत्रकारिता के समक्ष जन-जन में स्वातंत्र्य चेतना का संचार करना प्रमुख लक्ष्य था। जिसे तत्कालीन अख़बारों ने शिद्दत से निभाया। उस समय पत्रकारिता एक ‘मिशन’ थी लेकिन समय के साथ- साथ  मिशन  “प्रोफेशन” में तब्दील हो गया। जैसे जैसे सामाजिक -राजनीतिक परिदृश्य में परिवर्तन आता गया,पत्रकारिता भी उससे प्रभावित होती गयी। अखबार अब सिर्फ खबरों को जानने का साधन  नहीं रहे बल्कि इलेक्ट्रॉनिक  मीडिया के कारण खबरें बनाने  भी लगे क्योंकि चौबीस घंटे चैनलों पर ब्रेकिंग न्यूज चलाए जाने लगे।   व्यावसायिकता और टी. आर. पी.की अंधी दौड़ ने पत्रकारिता के मूल्यों को बदल के रख दिया है। पहले जनता के लिए खबरें प्रकाशित की जाती थीं, जनता को सूचना देना नैतिक दायित्व था। आज चैनलों की आपसी प्रतियोगिता  ने मूल्यों  को ताक पर रख कर जनता को उपभोक्ता बना दिया है।

महात्मा गांधी ने कहा था कि पत्रकारिता का पहले उद्देश्य जनता की इच्छाओं और विचारों को समझना, उनमें वांछनीय उद्देश्यों को जागृत करना और सार्वजनिक दोषों को निर्भीकतापूर्वक प्रकट करना है। अर्थात समाज को बदलना ही पत्रकारिता का दायित्व है। इन् उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए पत्रकारिता अपने दायित्वबोध से भावी पीढ़ी के लिए आदर्श स्थापित कर पायेगी।

 

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