केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि वह राजद्रोह कानून की समीक्षा के लिए तैयार है। अब सर्वोच्च न्यायालय ने भी केंद्र के इस रुख के बाद कहा है कि जब तक सरकार राजद्रोह कानून के भविष्य पर फैसला नहीं करती, तब तक इसे रद्द किया जाएगा और इसके आरोपी भी जमानत याचिका दायर कर सकते हैं। कोर्ट और केंद्र की तरफ से राजद्रोह कानून पर इस तेज-तर्रार रवैये को लेकर अब इसके औचित्य पर ही सवाल खड़े होने लगे हैं। दरअसल, कोर्ट कई मौकों पर इस कानून की संवैधानिक वैधता पर ही सवाल उठा चुका है, साथ ही इसके गलत इस्तेमाल की बात भी कह चुका है।
12 साल में कितनी बार इस्तेमाल हुआ यह कानून?
एनसीआरबी से कितना अलग है ये डेटा?
आखिर क्यों आया ये फर्क ?
किन राज्यों में राजद्रोह के सबसे ज्यादा केस ?
2010 से लेकर 2021 तक के डेटा को देखा जाए तो सामने आता है कि राजद्रोह का सबसे ज्यादा इस्तेमाल जिन पांच राज्यों में किया गया जहां बिहार में 2010 के बाद कुल 171 ऐसे केस दर्ज हुए, तो वहीं दूसरे नंबर पर तमिलनाडु रहा। इसके बाद उत्तर प्रदेश, झारखंड और कर्नाटक रहे। आरोपियों के लिहाज से बात करें तो राजद्रोह के मामलों के सबसे ज्यादा 4641 आरोपी झारखंड में बनाए गए। वहीं, तमिलनाडु में 3601, बिहार में 1608, उत्तर प्रदेश में 1383 और हरियाणा में 509 राजद्रोह के आरोपी बनाए गए।
राजद्रोह के आरोप झेलने वाले सामाजिक कार्यकर्ता से लेकर पत्रकार तक