डी एन एस आनंद
यह आजादी का 75 वां वर्ष है। यानी देश को आजाद हुए 75 वर्ष हो गए। इस वर्ष को देश भर में सरकारी स्तर पर आजादी का अमृत महोत्सव के रूप में मनाया जा रहा है। साइंस फार सोसायटी झारखंड एवं वैज्ञानिक चेतना साइंस वेब पोर्टल जमशेदपुर ने जन विज्ञान आंदोलन के प्रमुख स्तंभ रहे डॉ नरेन्द्र दाभोलकर के बलिदान की स्मृति में इसे वैज्ञानिक दृष्टिकोण वर्ष के रूप में मनाने का फैसला किया है। जन जन तक विज्ञान पहुंचाने एवं लोगों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण के विकास के लिए इस क्रम में विविध कार्यक्रमों का आयोजन किया जा रहा है। आजादी के 75 वें वर्ष के उपलक्ष्य में ही इंडियन पीपुल्स थिएटर एसोसिएशन (इप्टा ) स्वतंत्रता संग्राम की सांझी विरासत की रक्षा करने एवं शहीदों के सपनों को मंजिल तक पहुंचाने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर एक सांस्कृतिक यात्रा आयोजित कर रही है। इस यात्रा का नामकरण कबीर की महत्वपूर्ण वाणी “अढ़ाई आखर प्रेम का ” के नाम पर किया गया है। सांस्कृतिक यात्रा देश के कई राज्यों के विभिन्न भागों से गुजरते हुए विविध कार्यक्रमों के माध्यम से अपना संदेश जन जन तक पहुंचाएगी। इसी को रेखांकित करता प्रस्तुत है यह महत्वपूर्ण आलेख –
आजादी के बाद देश की सांझी सांस्कृतिक विरासत को सहेजने एवं आगे बढ़ाने में इप्टा ने बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इप्टा की यह राष्ट्रीय सांस्कृतिक यात्रा भी देश की मौजूदा हालात एवं आम आदमी के समक्ष मौजूद चुनौतियों को देखते हुए बेहद अहम है। देश में धर्मांधता संकीर्णता कट्टरता नफरत और हिंसा का जो बीज बोया जा रहा है वह घातक है। धर्म जाति भाषा और क्षेत्र के नाम पर नफरत फ़ैलाने, समाज को विभाजित करने का सिलसिला जारी है। जबकि आज यह जानना समझना अधिक जरूरी है कि आजादी के बाद के करीब सात दशक से भी अधिक समय की कुल जमा उपलब्धियां क्या रहीं ? आखिर इस अवधि में देश कहां पहुंचा ? हम कहां पहुंचे ? क्या इस दौर में पूरे हुए हमारे शहीदों के सपने ? क्या सार्थक हुआ उनका बलिदान ?
ऐसा नहीं हुआ। हां, इस बीच गरीब एवं अमीरों के बीच की खाई जरूर और चौड़ी होती गई। कुछ क्षेत्रों, खासकर विज्ञान एवं तकनीक के क्षेत्र में हुई प्रगति के बावजूद देश की लगभग एक तिहाई आबादी अब भी, गरीबी रेखा के नीचे तथा निरक्षर है तो लगभग आधी आबादी न्यूनतम स्वास्थ्य सुविधाओं से भी वंचित। भूख, गरीबी, कुपोषण, पर्यावरण प्रदूषण, विस्थापन, पलायन एवं अंधविश्वास अब भी देश के सामने एक बड़ी चुनौती है। भारतीय संविधान ने वैज्ञानिक मानसिकता के विकास को नागरिकों के मौलिक कर्तव्यों में शामिल किया। लेकिन जब सत्ता व्यवस्था पर काबिज वर्चस्ववादी ताकतें अपने फायदे के लिए परम्पराओं, मान्यताओं के नाम पर खुद अवैज्ञानिक सोच, पूर्वाग्रह युक्त जड़ मानसिकता एवं छद्म विज्ञान को बढ़ावा देने में जुटी हों, तब आम आदमी की मुसीबतें और अधिक बढ़ जाती है। ऐसे में चुप्पी साध कर बैठे रहने से बेहतर है महान संत कबीर दास की तरह अपनी बात खुल कर सामने रखना। बिल्कुल दो टूक शब्दों में, बिना परिणाम की चिंता किए। संविधान सम्मत अभिव्यक्ति की आजादी की रक्षा का संकल्प लेकर, संविधान, लोकतंत्र, प्रगतिशील एवं धर्मनिरपेक्ष मूल्यों की रक्षा के लिए कोई भी कीमत चुका कर, जन प्रतिरोध के स्वर को बुलंद करते हुए। इप्टा की सांस्कृतिक यात्रा धर्मांधता कट्टरता एवं नफरत के घने अंधेरे के खिलाफ मशाल जलाने एवं जलती मशाल लेकर आगे बढ़ने का साहसिक प्रयास है। कभी कबीर ने भी ” कबिरा खड़ा बाजार में लिए लुकाठी हाथ, जो घर जारे आपना, चले हमारे साथ” का आह्वान किया था। कबीर ने अढ़ाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय कहा था। ताकि समाज को प्रेम के धागे में बांधा जा सके। नफ़रत नहीं अढ़ाई आखर प्रेम, जो समाज को एकजुट करेगा। उसे एकता, प्रेम सौहार्द्र एवं भाईचारे के सूत्र में पिरोकर एक खूबसूरत गुलदस्ता बनाएगा। ऐसे में आजादी के 75 वें वर्ष के उपलक्ष्य में आयोजित इप्टा की यह राष्ट्रीय सांस्कृतिक यात्रा काफी महत्वपूर्ण है।
खुद इप्टा के शब्दों में – आजादी के 75 साल के मौके पर निकलने वाली सांस्कृतिक यात्रा “ढाई आखर प्रेम का” असल में स्वतंत्रता संग्राम के गर्भ से निकले स्वतंत्रता – समता – न्याय और बंधुत्व के उन मूल्यों के तलाश की कोशिश है, जो आजकल नफरत, वर्चस्व और दंभ के तुमुलघोष में डूब सा गया है। गो कि वो हमारे घोषित संवैधानिक आदशों में झिलमिलाते हुये हर्फों के रूप में, गांधी के प्रार्थनाओं में और हमारी आशाओं में अभी भी चमक रहा है। जिसका दामन पकड़कर हमारे किसान गांधी की अंहिसा और भगत सिंह के अदम्य साहस के रास्ते अपनी कुबार्नी देते हुए डटे हैं।
यह यात्रा उन तमाम शहीदों, समाज सुधारकों एवं भक्ति आंदोलन और सुफीवाद के पुरोधाओं का सादर स्मरण है, जिन्होंने भाषा, जाति, लिंग और धार्मिक पहचान से इतर मनुष्य की मुक्ति एवं लोगों से प्रेम को अपना एकमात्र आदर्श घोषित किया।
प्रेम जो उम्मीद जगाता है, प्रेम जो बंधुत्व, समता और न्याय की पैरोकारी करता है, प्रेम जो कबीर बनकर पाखंड पर प्रहार करता है, प्रेम जो भाषा, धर्म, जाति नहीं देखता और इन पहचानों से मुक्त होकर धर्मनिरपेक्षता का आदर्श बन जाता है। इस सांस्कृतिक यात्रा पर इप्टा ने लोगों का आह्वान करते हुए कहा है कि आइए… “ढाई आखर प्रेम का” इस यात्रा के बहाने बापू के पास चलें, भगत, अशफाक, बिस्मिल और अनेकानेक शहीदों के पास चलें। उस हिंदुस्तान में चलें जो अंबेडकर के ख्वाब में पल रहा था, जो विवेकानंद और रवींद्रनाथ टैगोर के उद्दात्त मानवतावादी आदर्शों में व्यक्त हो रहा था। मानवतावाद जो अंधराष्ट्रवादी – मानवद्रोही विचार को चुनौती देते हुए टैगोर के शब्दों में “उन्नत भाल और भय से मुक्त विचार” में मुखरित हो रहा था। जहां ज्योतिबा फुले, सावित्रीबाई फुले और पंडिता रमाबाई जैसे लोग ज्ञान के सार्वभौम अधिकार के लिए लड़ रहे थे। जो आज तक भी हासिल नहीं किया जा सका है। वहीं अंधविश्वाश और रूढ़िवाद के खिलाफ ईश्वरचंद्र विद्यासागर और राम मोहन राय सरीखे लोग तर्क बुद्धि और विवेक का दामन पकड़कर एक तर्कशील हिंदुस्तान के रास्ते चल रहे थे। यह रास्ता प्रेम का ज्ञान का रास्ता है।
यह यात्रा नफरत के बरक्स प्रेम, दया करुणा, बंधुत्व, समता से परिपूर्ण न्यायपूर्ण हिंदुस्तान को समर्पित है। जिसे हम और आप मिलकर बनाएंगे। जो बनेगा जरूर।
वो सुबह कभी तो आयेगी…!
वो सुबह हमही से आयेगी….!!
डी एन एस आनंद
महासचिव, साइंस फार सोसायटी, झारखंड
संपादक, वैज्ञानिक चेतना, साइंस वेब पोर्टल, जमशेदपुर, झारखंड