एम विश्वेश्वरैया (M Visvesvaraya) केवल एक कुशल इंजीनियर (Engineer) ही नहीं थे. वे एक बेहतरीन नियोजनकर्ता के साथ एक शानदार दृष्टा (Visonary) भी थे जिनकी प्रेरणा से भारत के विकास कार्यों ने आकार लिया था.

भारत में हर साल 15 सितंबर को इंजनियर्स डे (Engineers Day) मनाया जाता है. देश में हर साल लाखों इंजीनियर पैदा होते हैं जो सिविल, मैकेनिकल, इलेक्ट्रिकल, इलक्ट्रॉनिक, कम्पयूटर, आदि विषयों के इंजीनियर होते हैं. लेकिन आज से करीब 138 साल पहले एम विश्वेश्वरैया (M Visvesvaraya) जब इंजीनियर बने थे, तब किसी ने सपने में भी नहीं सोचा था कि वे ऐसी मिसाल पेश कर देंगे जो देश के विकास Development of India) के लिए प्रेरणा बन कर रह जाएगी. आइए आज इस मौके पर सर एमवी के जीवन के कुछ किस्से और बातें जानते हैं.

पढ़ाई में रहे हमेशा अव्वल
विश्वेश्वरैया का जन्म 15 सिंतबर 1860 मैसूर राज्य के कोलार जिले के चिक्काबल्लापुर तालुक में तेलुगु परिवार को  हुआ था.  आरंभिक शिक्षा गांव में पूरी होने के बाद, उन्होंने 1880 बीए की पढ़ाई अव्वल स्थान से बंगलूर के सेंट्रल कॉलेज से पूरी की. इसके बाद मैसूर सरकार की मदद से उन्हंने इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूना के साइंस कॉलेज में पूरी कर वहां भी पहला स्थान हासिल किया.

कर्नाटक की कायापलट
टॉपर होने की वजह से ही विश्वेश्वरैया को महाराष्ट्र सरकार ने सहायक इंजीनियर के पद के लिए चुन लिया. उनके नाम मौसूर और कर्नाटक के क्षेत्रो में कृष्णराजसागर बांध सहित बहुत से निर्माण कार्य कराने का श्रेय है जिसने कर्नाटक को एक नई ऊंचाइयों पर खड़ा कर दिया, उन्हें आज भी कर्नाटक का भगीरथ कहा जाता है.

देश विदेश में
कर्नाटक से बाहर विश्वेश्वरैया के कम उपलब्धियां नहीं रहीं. सिंधु नदी से सुक्कुर कस्बे को पानी की आपूर्ति की योजना हो, ग्वालियर का टिगरी डैम हो, 1952 में पटना में गंगा नदी पर राजेंद्र सेतु के निर्माण की योजना, उन्होंने हर जगह अपने विशेषज्ञता का लोहा मनवाया. यहां तकि कि अदन, मिस्र, कनाडा,अमेरिका और रूस में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई.

जब चेन खींच कर अचानक रोकी ट्रेन
अंग्रेजों के शासन में एक बार विश्वेश्वरैया रेलगाड़ी में यात्रा कर रहे थे. खचाखच भरी रेल में अधिकांश यात्री अंग्रेज थे. साधारण वेशभूषा में बैठे विश्वेश्वरैया ने अचानक रेल की चेन खींच दी, तो लोग उन्हें भला बुरा कहने लगे. जब गार्ड ने पूछताछ की तो उन्होंने बेझिझक जवाब दिया कि चेन उन्होंने खींची है.

बहुत से लोगों की बचाई जान
जब विश्वेश्वरैया से इसकी वजह पूछी गई की तब उन्होंने बताया कि उन्हें लगता है कि यहां से एक फर्लांग दूर रेल की पटरी उखड़ी हुई है. गार्ड ने जब हैरानी से पूछा कि वे उन्हें यह बात कैसे पता चली, तब विश्वेश्वरैया ने कहा कि गाड़ी की स्वाभाविक आवाज में अंतर आ गया है और पटरी की गूंजने वाली आवाज की गति से उन्हें खतरे का अंदाजा हुआ. जांच करने पर विश्वेश्वरैया सही साबित हुए. पाया गया कि लगभग उसी दूरी पर पटरी के जोड़ खुले हुए हैं. इस तरह विश्वेश्वरैया ने कई लोगों की जान बचा ली. जब लोगों ने उनसे उनका परिचय पूछा तो उनके बारे में जानकर अंग्रेज हतप्रभ रह गए और उन्हें ना पहचान पाने के लिए शर्मिंदा भी.

नियोजन पर किताबें
भारत के शुरुआती विकास का आधार रहीं पंचवर्षीय योजनाओं को शुरू करने की प्रेरणा रूस की पंचवर्षीय योजना से ली गई थीं. रूस ने ऐसी योजनाएं 1928 में शुरू की थी. लेकिन उससे 8 साल पहले ही 1920 में उन्होंने रीकंस्ट्रक्टिंग इंडिया पर इस तरह की योजनाओं का जिक्र किया था. इसके अलावा उन्होंने 1935 प्लान्ड इकोनॉमी ऑफ इंडिया किताब लिखी.

विश्वेश्वरैया को उनकी लंबी सेहतमंद उम्र के लिए भी जाना जाता है. 92 साल की उम्र में उन्होंने पटना के राजेंद्र सेतु का निर्माण करवाया, 1955 में भारत के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से नवाजा गया. 98 साल की उम्र में भी वे नियोजन पर किताब लिख रहे थे. जब वे सौ वर्ष के हुए तब उनके सम्मान में एक डाक टिकट जारी किया गया 101 वर्ष की उम्र मे 14 अप्रैल 1962 को उनका देहांत हो गया.

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