यह आजादी का 75 वां वर्ष है जिसे देश में आजादी का अमृत महोत्सव के रूप में मनाया जा रहा है। देश की यात्रा के इस मुकाम पर, स्वतंत्रता संग्राम के विभिन्न नायकों के विचारों, कार्यों, उनके संघर्षों एवं बलिदानों को याद करना, उसे पूरा करने का संकल्प लेना बेहद महत्वपूर्ण है। इसमें शामिल हैं संविधान निर्माता, भारत रत्न बाबा साहेब डॉ भीमराव अम्बेडकर। अतीत की सभी कमजोरियों, विसंगतियों, विकृतियों को दूर कर, अंधविश्वास मुक्त, संविधान सम्मत, समतामूलक, विविधतापूर्ण, धर्मनिरपेक्ष, न्यायपूर्ण, तर्कशील, विज्ञानपरक प्रगतिशील, आधुनिक, भारत का निर्माण उनका सपना था। उनके विचारों, सपनों को मंजिल तक पहुंचाना देशवासियों का दायित्व है। भारत का मौजूदा हालात संविधान, लोकतंत्र, अभिव्यक्ति की आजादी तथा एकता, प्रेम, सौहार्द्र एवं भाईचारा की रक्षा के दायित्व को बेहद महत्वपूर्ण बना देता है। इसी को रेखांकित करता प्रस्तुत है अंबेडकर जयंती पर यह महत्वपूर्ण आलेख –
संविधान निर्माता के तौर पर प्रसिद्ध बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर की जयंती हर साल 14 अप्रैल के दिन मनाई जाती है। बाबा साहेब की जयंती को पूरे देश में लोग मनाते हैं। डाॅ. भीमराव अंबेडकर को भारत रत्न से सम्मानित किया जा चुका है। उनका पूरा जीवन संघर्षमय रहा है। उन्होंने भारत की आजादी के बाद देश के संविधान के निर्माण में अभूतपूर्व योगदान दिया। बाबा साहेब ने कमजोर और पिछड़े वर्ग के अधिकारों के लिए पूरा जीवन संघर्ष किया। डॉ. अंबेडकर सामाजिक नवजागरण के अग्रदूत और समतामूलक समाज के निर्माणकर्ता थे। अंबेडकर समाज के कमजोर, मजदूर, महिलाओं आदि को शिक्षा के जरिए सशक्त बनाना चाहते थे। इसी कारण डॉ. भीमराव अंबेडकर की जयंती को भारत में समानता दिवस और ज्ञान दिवस के रूप में मनाया जाता है।
भीमराव अंबेडकर का जीवन परिचय
डाॅ. भीमराव अंबेडकर का जन्म मध्य प्रदेश के एक छोटे से गांव महू में 14 अप्रैल 1891 में हुआ था। हालांकि उनका परिवार मूल रूप से रत्नागिरी जिले से ताल्लुक रखता था। अंबेडकर के पिता का नाम रामजी मालोजी सकपाल था, वहीं उनकी माता भीमाबाई थीं। डॉ. अंबेडकर महार जाति के थे। ऐसे में उन्हें बचपन से ही भेदभाव का सामना करना पड़ा।
अंबेडकर की शिक्षा
बाबा साहेब बचपन से ही बुद्धिमान और पढ़ाई में अच्छे थे। हालांकि उस दौर में छुआछूत जैसी समस्याएं व्याप्त होने के कारण उनकी शुरुआती शिक्षा में काफी परेशानी आई। लेकिन उन्होंने जात पात की जंजीरों को तोड़ अपनी पढ़ाई पूरी की। मुंबई के एल्फिंस्टन रोड पर स्थित सरकारी स्कूल में वह पहले अछूत छात्र थे। बाद में 1913 में अंबेडकर ने अमेरिका के कोलंबिया यूनिवर्सिटी से आगे की शिक्षा ली। यह एक बड़ी उपलब्धि थी कि साल 1916 में बाबा साहेब को शोध के लिए सम्मानित किया गया था।
बाबा साहेब को मिली डाॅक्टर की उपाधि
लंदन में पढ़ाई के दौरान उनकी स्कॉलरशिप खत्म होने के बाद वह स्वदेश वापस आ गए और यहीं मुंबई के सिडनेम कॉलेज में प्रोफेसर के तौर पर नौकरी करने लगे। 1923 में उन्होंने एक शोध पूरा किया था, जिसके लिए उन्हें लंदन यूनिवर्सिटी ने डॉक्टर ऑफ साइंस की उपाधि दी थी। बाद में साल 1927 में अंबेडकर ने कोलंबिया यूनिवर्सिटी से भी पीएचडी पूरी की।
दलित वर्ग को समानता दिलाने के लिए किया संघर्ष
डॉ. भीमराव अंबेडकर ने प्रारंभिक शिक्षा लेने में भी कठिनाई का सामना करना पड़ा, लेकिन इन सबके बावजूद भी अंबेडकर ने न केवल उच्च शिक्षा हासिल की बल्कि, स्वतंत्र भारत के पहले कानून मंत्री बने. उन्होंने अपना पूरा जीवन देश के नाम अर्पित कर दिया था. डॉक्टर भीमराव अंबेडकर समाज में दलित वर्ग को समानता दिलाने के लिए जीवन भर संघर्ष करते रहे. देश से जाति प्रथा जैसी कुव्यवस्था को हटाने के लिए बाबासाहेब ने तमाम आंदोलन किये थे.
एक दलित परिवार से ताल्लुक रखने वाले डॉ. अंबेडकर ने अपने बचपन में भी कई यातनाएं झेली थीं जिनका गहरा असर उनके व्यक्तित्व पर पड़ा.भीमराव अंबेडकर ने अपना पूरा जीवन सामाजिक बुराइयों जैसे छुआछूत और जातिवाद के खिलाफ संघर्ष में लगा दिया. पूरे विश्व में उनके मानवाधिकार आंदोलनों, उनकी विद्वता जानी जाती है.
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाने वाले देश के पहले अर्थशास्त्री थे डॉ अंबेडकर
आज भले ही ज्यादातर लोग उन्हें भारतीय संविधान के निर्माता और दलितों के मसीहा के तौर पर याद करते हों, लेकिन डॉ अंबेडकर ने अपने करियर की शुरुआत एक अर्थशास्त्री के तौर पर की थी. डॉ अंबेडकर किसी अंतरराष्ट्रीय यूनिवर्सिटी से अर्थशास्त्र में पीएचडी हासिल करने वाले देश के पहले अर्थशास्त्री थे. उन्होंने 1915 में अमेरिका की प्रतिष्ठित कोलंबिया यूनिवर्सिटी से इकॉनमिक्स में एमए की डिग्री हासिल की. इसी विश्वविद्यालय से 1917 में उन्होंने अर्थशास्त्र में पीएचडी भी की.
इतना ही नहीं, इसके कुछ बरस बाद उन्होंने लंदन स्कूल ऑफ इकॉनमिक्स से भी अर्थशास्त्र में मास्टर और डॉक्टर ऑफ साइंस की डिग्रियां हासिल कीं. खास बात यह है कि इस दौरान बाबा साहेब ने दुनिया के सबसे प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों से डिग्रियां हासिल करने के साथ ही साथ अर्थशास्त्र के विषय को अपनी प्रतिभा और अद्वितीय विश्लेषण क्षमता से लगातार समृद्ध भी किया.
मरणोपरांत भारत रत्न से किया गया था सम्मानित
2015 से अंबेडकर जयंती को सार्वजनिक अवकाश घोषित कर दिया गया है. उन्हें 31 मार्च 1990 को मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित किया गया था. बाबासाहेब का जीवन सचमुच संघर्ष और सफलता की ऐसी अद्भुत मिसाल है.