यह आजादी का 75 वां वर्ष है। देश में इस वर्ष को सरकारी स्तर पर आजादी के अमृत महोत्सव के रूप में मनाया जा रहा है। लोगों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास एवं अंधविश्वास मुक्त तर्कशील, विज्ञान सम्मत, आधुनिक भारत के निर्माण के लिए साइंस फार सोसायटी झारखंड एवं वैज्ञानिक चेतना साइंस वेब पोर्टल जमशेदपुर, झारखंड द्वारा इस वर्ष को वैज्ञानिक दृष्टिकोण वर्ष के रूप में मनाया जा रहा है। यह जरूरी है कि आजादी के लिए बलिदान देने वाले सभी शहीदों के सपनों को हम मंजिल तक पहुंचाएं तथा उनके सपनों का, संविधान सम्मत समतामूलक, विविधतापूर्ण, धर्मनिरपेक्ष, न्यायपूर्ण, तर्कशील, विज्ञानपरक, प्रगतिशील एवं आधुनिक भारत बनाएं।
चर्चा में क्यों है जलियांवाला बाग हत्याकांड ?
जलियांवाला बाग अमृतसर के स्वर्ण मंदिर के पास का एक छोटा सा बगीचा है जहां 13 अप्रैल 1919 को ब्रिगेडियर जनरल रेजिनाल्ड एडवर्ड डायर के नेतृत्व में अंग्रेजी फौज ने निहत्थे, शांत बूढ़ों, महिलाओं और बच्चों सहित सैकड़ों लोगों पर गोलियां चला कर मार डाला था और हजारों लोगों को घायल कर दिया था। यदि किसी एक घटना ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम पर सबसे अधिक प्रभाव डाला था तो वह घटना यह जघन्य हत्याकाण्ड ही था।इसी घटना की याद में यहाँ पर स्मारक बना हुआ है।
जलियांवाला बाग हत्याकांड क्यों हुआ था ?
रौलेट एक्ट का विरोध करने के लिए एक सभा हो रही थी जिसमें जनरल डायर नामक एक अँग्रेज ऑफिसर ने बिना कारण के उस सभा में उपस्थित भीड़ पर गोलियाँ चला दीं जिसमें 400 से अधिक व्यक्ति मरे और 2000 से अधिक घायल हुए। अमृतसर के डिप्टी कमिश्नर कार्यालय में 484 लोगों के शहीद होने की पुष्टि की गई है। जबकि जलियांवाला बाग में कुल 388 शहीदों की सूची है। वहीं ब्रिटिश राज के अभिलेख में 200 लोगों के घायल होने और 379 लोगों के शहीद होने की बात स्वीकार की गई है, जिनमें से 337 पुरुष, 41 नाबालिग लड़के और एक 6-सप्ताह का बच्चा था।
कुछ इस तरह दिया गया घटना को अंजाम
ब्रिटिश हुकूमत ने भारत में क्रांतिकारी गतिविधियों पर रोक लगाने के लिए 13 अप्रैल 1919 को रोलेट एक्ट लाने का फैसला किया। अमृतसर के जलियांवाला बाग में बैसाखी पर्व पर सिख इसके विरोध में एकत्र हुए, इस भीड़ में महिलाएं और बच्चे भी थे। उस समय जलियांवाला बाग की चारों तरफ बड़ी-बड़ी दीवारें बनी हुई थी और वहां से बाहर जाने के लिए सिर्फ एक मुख्य द्वार था। यहां जनरल डायर 50 बंदूकधारी सिपाहियों के साथ पहुंचा और बिना किसी पूर्व सूचना के गोली चलाने का आदेश दे दिया। यह फायरिंग लगभग 10 मिनट तक चलती रही, इसमें कई बेगुनाहों की जानें गई। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, इस घटना में 200 लोग घायल हुए और 379 लोग शहीद हुए। जबकि अनाधिकारिक आंकड़ों के अनुसार इस घटना में 1000 से अधिक लोग मारे गए और 2000 से अधिक लोग घायल हुए थे।
क्या था रोलेट एक्ट
इस एक्ट के मुताबिक ब्रिटिश सरकार के पास शक्ति थी कि वह बिना ट्रायल चलाए किसी भी संदिग्ध को गिरफ्तार कर सकती थी या उसे जेल में डाल सकती थी। रोलेट एक्ट के तहत पंजाब में दो मशहूर नेताओं डॉक्टर सत्यपाल और डॉ. सैफुद्दीन किचलू को गिरफ्तार कर लिया गया। इनकी गिरफ्तारी के विरोध में कई प्रदर्शन हुए और कई रैलियां भी निकाली गईं। इसके बाद ब्रिटिश सरकार ने अमृतसर में मार्शल लॉ लागू कर दिया और सभी सार्वजनिक सभाओं और रैलियों पर रोक लगा दी।
जलियांवाला बाग का शहीदी कुआं
जलियांवाला बाग गोलीकांड में ताबड़तोड़ की गयी गोलीबारी में इतनी भयंकर भगदड़ मची कि निहत्थे लोग अपनी जान बचाने के लिए बाग में ही स्थित एक कुएं में कूदते गए। काफी लोगों की तो इस कुए में कूदने से ही मृत्यु हुई। दरअसल जलियांवाला बाग से बाहर जाने के लिए एक संकरा मार्ग था और चारों ओर मकान थे। जब लोगों को भागने का कोई रास्ता नहीं मिला तो बाग में स्थित इस कुएं में कूदते गए और कुछ ही देर में यह कुआं लाशों से भर गया।
जलियांवाला बाग हत्याकांड का बदला
इतिहासकारों के अनुसार जलियांवाला बाग हत्याकांड में किया गया नरसंहार एक सुनियोजित षडयंत्र था, जिसे पंजाब के गर्वनर माइकल ओ’डायर, जनरल डायर और ब्रिटिश अधिकारियों ने रचा था। दरअसल ये सब मिलकर पंजाबियों और क्रांतिकारियों को डराना था ताकि 1857 के गदर जैसी कोई स्थिति नहीं बने। जलियांवाला बाग हत्याकांड से पूरा हिंदुस्तान हुआ था और इसका बदला लिया पंजाब के ही क्रांतिकारी शेर सरदार उधम सिंह ने। उधम सिंह का बचपन का नाम भी शेर सिंह ही था। उधम सिंह का जन्म पंजाब के संगरूर जिले के सुनाम गांव में हुआ था। उधम सिंह को भी भगत सिंह की ही तरह शहीद-ए-आजम कहा जाता है।