राज कुमार शाही
यह आजादी का 75 वां वर्ष है।जिसे देश भर में आजादी का अमृत महोत्सव के रूप में मनाया जा रहा है। साइंस फार सोसायटी झारखंड इसे वैज्ञानिक दृष्टिकोण वर्ष के रूप में मना रही है। आज 23 मार्च है, अमर शहीद भगत सिंह का शहादत दिवस। तमाम तरह की गैर बराबरी से मुक्त, तर्कशील, समतामूलक विविधतापूर्ण, धर्मनिरपेक्ष, शोषण उत्पीड़न मुक्त समाज, देश – दुनिया का निर्माण युवा भगत सिंह का सपना था। देश को गुलामी की जंजीरों से मुक्त कराने के लिए काफी कम उम्र में ही उन्होंने हंसते हंसते फांसी के फंदे को चूम लिया था। पर आजादी के करीब सात दशक बाद भी कितना पूरा हुआ शहीद भगत सिंह का सपना ? देश में अमीरी- गरीबी के बीच की खाई लगातार बढ़ती ही जा रही है एवं संविधान सम्मत कर्तव्यों की अनदेखी कर, सत्ता – व्यवस्था पर काबिज वर्चस्ववादी ताकतों द्वारा, अपने फायदे के लिए, लगातार धर्मांधता, अवैज्ञानिक, अतार्किक सोच समझ को बढ़ावा दिया जा रहा है। ऐसे में भगतसिंह के सपनों का भारत का निर्माण हमारा महत्वपूर्ण दायित्व बन जाता है। प्रस्तुत है इसी तथ्य को रेखांकित करता, प्रगतिशील लेखक संघ, पटना से जुड़े राज कुमार शाही का यह महत्वपूर्ण आलेख
भगतसिंह का जन्म पंजाब के लायलपुर जिले के बंगा नामक एक गांव में हुआ था जो अब पाकिस्तान में स्थित है।इनके पिताजी का नाम सरदार किशन सिंह एवं माताजी का नाम विद्यावती कौर था। इनका जन्म 27 सितंबर 1907 ईस्वी को एक किसान परिवार में हुआ था।इनके चाचा एवं पिताजी दोनों ही देश में चल रहे स्वतंत्रता आंदोलन में काफी सक्रिय भूमिका अदा कर रहे थे। इस तरह देशभक्ति की भावना इन्होंने अपने परिवार में ही सीखा। इनकी प्रारंभिक शिक्षा डीएवी स्कूल में हुई इसके बाद की शिक्षा के लिए नेशनल कॉलेज लाहौर में दाखिला लिया परन्तु बीच में ही पढ़ाई छोड़कर ग़दर पार्टी एवं बाद में नौजवान भारत सभा में सक्रिय भूमिका अदा करते हुए नौजवानों को संगठित कर ऐतिहासिक दायित्वों को पूरा करने में लग गए।इनके जीवन में 13 अप्रैल 1919 में हुए जालियांवाला बाग हत्या कांड़ ने काफी हद तक प्रभावित किया था। इस समय इनकी आयु मात्र बारह साल थी इस घटना ने भगतसिंह के मन में अंग्रेजी सरकार के प्रति नफ़रत पैदा कर दी।1922 ईस्वी में चौरा चौरी कांड़ के बाद गांधी जी ने अपना आंदोलन वापस ले लिया जिसके कारण पूरे देश भर में गांधी जी के प्रति आक्रोश हुआ। भगतसिंह के मन में इस घटना के बाद गांधी जी के प्रति दृष्टिकोण में बदलाव कर दिया। इस आंदोलन को वापस लेने के विरोध में मोतीलाल नेहरू, चितरंजन दास, सुभाष चन्द्र बोस सहित अन्य नेताओं ने काफी हद तक आलोचना की थी। भगतसिंह ने स्पष्ट रूप से लिखा कि गांधी जी का रास्ता देश में पूंजीपति वर्ग को सक्ता में लाना है जबकि हमारा रास्ता मजदूर किसान राज कायम करना है। भगतसिंह एवं उनके साथियों के उपर सोवियत संघ में लेनिन के नेतृत्व में हाल ही में संपन्न रूसी क्रांति का एक उच्च आदर्श प्रेरित करने का काम कर रहा था।
काकोरी काण्ड में रामप्रसाद बिस्मिल सहित अन्य चार क्रांतिकारियों को फांसी की सज़ा एवं सोलह अन्य को आजीवन करावास की सज़ा सुनाई गई थी। इस तरह से अंग्रेजों का अत्याचार लगातार बढ़ता जा रहा था इसके चलते क्रांतिकारी चेतना से लैस युवाओं की विभिन्न टुकड़ियों ने संगठित होकर जुझारू आंदोलन करने का फैसला लिया। हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन नामक एक संगठन के माध्यम से अपनी गतिविधियों को संचालित करने की दिशा में आगे बढ़ रहें थे।बाद में अपने संगठन के नाम में सोशलिस्ट शब्द जोड़कर एक संदेश देने का काम किया कि हमारा लक्ष्य कैसा भारत बनाना है? क्या भगतसिंह के सपनों का भारत बन गया? एक शोषणविहीन समाज बनाने का सपना न जाने कहां खो गया? जाति और धर्म आधारित राजनीति करने वाली शक्तियों ने पूरे देश को एक ऐसे चौराहे पर लाकर खड़ा कर दिया है जहां से लौटना काफी दुष्कर कार्य है। लोकतंत्र एवं संवैधानिक संस्थाओं की गरिमा दिन प्रतिदिन घटती जा रही है। पूंजीवादी अर्थव्यवस्था ने समाज के एक बड़े हिस्से को उसके बुनियादी सुविधाओं एवं अधिकारों से वंचित कर दिया है। उपरोक्त सवालों से बचते हुए जिस सड़ी गली व्यवस्था के खिलाफ भगतसिंह एवं उनके साथियों ने संघर्ष किया था आज चुपचाप बैठे रहना शहीदों का अपमान करना होगा।
साइमन कमीशन के खिलाफ आंदोलन कर रहे स्वतंत्रता सेनानी के उपर किया गया लाठी चार्ज जिसमें पंजाब के प्रसिद्ध कांग्रेसी नेता लाला लाजपत राय बुरी तरह से घायल कर दिया गया था। इस घटनाक्रम के कुछ दिन बाद ही लाला लाजपत राय चल बसे थे इस घटना से पूरे पंजाब सहित देश भर में अंग्रेजी सरकार के खिलाफ भारी आक्रोश था। इस घटना में लाहौर के पुलिस अधीक्षक जे पी सैंडर्स जिसने लाठी चार्ज करने का हुक्म दिया था कि हत्या कर बदला लेने का काम भगतसिंह एवं राजगुरू ने मिलकर किया था। इसमें चंद्रशेखर आजाद ने भी मदद किया था।श्रम कानूनों में संशोधन एवं किसान मजदूर विरोधी एक बिल को पास किए जाने के खिलाफ ब्रिटिश भारत के तत्कालीन सेंट्रल ऐसेम्वली हॉल में 8 अप्रैल 1929 को बम फेंक कर विरोध किया गया।बम फेंकने वाले में भगतसिंह एवं बटुकेश्वर दत्त शामिल थे।बम फेंकने का उद्देश्य किसी को नुक्सान पहुंचाना नहीं था बल्कि अपनी बात अंग्रेजी हुकूमत को सुनाना एवं देश के आम आवाम तक अपने विचारों एवं उद्देश्यों को पहुंचाना था। वहां फेंके गए पर्चा में साफ़ लिखा था कि इंकलाब जिंदाबाद एवं साम्राज्यवाद मुर्दाबाद। गिरफ्तार किए जाने के बाद अदालत को एक प्लेटफार्म बना कर अपने विचारों को आम आवाम तक पहूंचाने का ऐतिहासिक काम किया।
उस समय कांग्रेस के अंदर एवं अन्य मजदूर- किसान संगठनों में भगतसिंह एवं उनके साथियों के विचारों को स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है।मजबूरन डोमिनियन स्टेट की मांग करने वाली कांग्रेस पार्टी को संपूर्ण स्वतंत्रता के लिए प्रस्ताव पारित करना पड़ा। भगतसिंह एवं उनके साथियों ने जेल में बंद राजनीतिक कैदियों को अन्य कैदियों की तरह बेहतर सुविधाएं प्रदान किया जाए इसको लेकर ऐतिहासिक रूप से भूख हड़ताल कर पूरे देश एवं विदेश का ध्यान अपनी तरफ खींचा। इस भूख हड़ताल में यतीनदास ने अपनी शहादत दी। देश के विभिन्न हिस्सों में भगतसिंह एवं उनके साथियों के प्रति व्यापक पैमाने पर समर्थन बढ़ रहा था इससे घबराकर 7 अक्टूबर 1930 ईस्वी को अंग्रेजी हुकूमत ने भगतसिंह एवं उनके साथियों सुखदेव एवं राजगुरू को फांसी दिए जाने की सज़ा सुनाई गई।23 मार्च 1931 ईस्वी को 7 बजकर 33 मिनट पर इन तीनों को फांसी दी गई। फांसी दिए जाने से चंद घंटों पहले भगतसिंह महान दार्शनिक एवं मजदूर वर्ग के नेतृत्व में रूसी क्रांति को संपन्न करने वाले शख्सियत की प्रसिद्ध पुस्तक राज्य और क्रांति पढ़ रहे थे। आजादी के बाद भगतसिंह एवं उनके साथियों में बहुतायत ने भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी में शामिल हो कर उनके सपनों को साकार करने की कोशिश की परंतु वह सपना आज भी जिंदा है खेतों और खलिहानों में बशर्ते कि इस ऐतिहासिक दायित्वों को लेकर हम कितने गंभीर हैं।
राज कुमार शाही
( लेखक प्रगतिशील लेखक संघ एवं केदार दास श्रम एवं शोध संस्थान, पटना, बिहार के सदस्य हैं। )