“हो” भाषा के सुप्रसिद्ध साहित्यकार पंडित गुरुकुल लको बोदरा ने आदिवासी समाज के उत्थान के लिए अपना संपूर्ण जीवन समर्पित कर दिया. “हो” भाषा भारत में झारखंड, पश्चिम बंगाल और उड़ीसा के आदिवासी क्षेत्रों में बहुत आयात में बोली जाती है. पंडित लको बोदरा ने ही वर्ष 1940 में वारंग क्षिति नामक लिपि की खोज की और उसे जन-जन में प्रचलित किया. लको बोदरा को बांग्ला, ओड़िया, उर्दू, हिंद और अंग्रेजी भाषा पर बहुत अच्छी पकड़ थी. लको बोदरा एक बेहतरीन फुटबॉल प्लेयर और शानदार बांसुरी वादक थे.
पंडित लको बोदरा का जीवन परिचय (Lako Bodra Biography)
पंडित लको बोदरा का जन्म 19 सितंबर 1919 को झारखंड राज्य के सिंहभूम जिले के पास के गांव में हुआ था. इनके पिता का नाम लेबेया बोदरा था. इनकी माता का नाम जानों कुई था. लको बोदरा का बचपन धार्मिक माहौल में बीता. इन्होंने अपने प्रारंभिक शिक्षा बचोम और पुरुएया के ही प्राथमिक विद्यालय से की. जिसके बाद कक्षा आठवीं के शिक्षा ग्रहण करने के लिए इन्हें अपनी नानी के यहाँ भेजा गया. जहां उन्होंने ग्रामर हाई स्कूल में कक्षा नवीं तक की शिक्षा प्राप्त की. ग्रामर हाई स्कूल को वर्तमान समय में एंग्लो इंडियन स्कूल के नाम से भी जाना जाता है जहां पर विदेशों से आकर बच्चे पढ़ाई करते हैं.
इसी स्कूल में चक्रधरपुर के राजा नारा पति सिंह के पुत्र कूनूर और पुत्री पद्मावती ने भी यही से शिक्षा प्राप्त की थी. इसके बाद उन्होंने चाईबासा के जिला उच्च विद्यालय से हाई स्कूल की परीक्षा पास की. अपनी विलक्षण प्रतिभा और कुशाग्र बुद्धि के कारण वे स्कूल के बुद्धिमान बालकों में से एक थे. जिसके कारण उन्हें राजघराने के पुस्तकालय का अवलोकन करने का मौका मिला था. जहां पर खोज करते हुए उन्होंने प्राचीन साहित्य और हो लिपि की खोज की. जहां उन्हें अपने टीचर मिस रोजलीन का समर्थन मिला जिन्होंने उन्हें बहुत सी पुस्तकें जैसे मदर इंडिया, हिस्ट्री ऑफ़ इंडिया आदि उपलब्ध करवाई.
स्नातक की शिक्षा प्राप्त करने में जयपाल सिंह मुंडा ने सहायता की थी. जयपाल सिंह मुंडास्वतंत्रता आंदोलन के जनजातीय वर्ग के नेता थे और भारतीय हॉकी टीम के पहले कप्तान थे. इन्होंने पंजाब के जालंधर सिटी कॉलेज से बीएससी की डिग्री पूरी की और उसके बाद होम्योपैथी की डिग्री पूर्ण की.
वर्ष 1955 में इन्होंने तर्तंग अकाला नामक आश्रम की स्थापना की. जिसका उद्देश्य सामाजिक एवं शिक्षा के क्षेत्र में कार्य करना था. वर्ष 1958 में इनकी मुलाकात प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू से हुई जहां इनके बीच हो भाषा और साहित्यिक विषयों को लेकर चर्चा हुई. जिसके बाद उन्हें वर्ष 1960 में भारतीय पुरातत्व विभाग की टीम का हिस्सा बनने का मौका मिला. इस दौरान उन्होंने हड़प्पा, मोहनजोदड़ो सभ्यता से संबंधित तथ्यों पर अनुसंधान किया. जिसके बाद उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर अपनी प्रतिभा दिखाने का मौका दिल्ली में मिला. वर्ष 1976 में इन्होंने हो संस्कृति के कार्यक्रम की अध्यक्षता की. जहां पर तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी मौजूद थी. जहां उन्हें प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी जी द्वारा स्वर्ण पदक प्रदान किया गया
लको बोदरा की मृत्यु (Lako Bodra Death)
29 जून 1986 को इनकी मृत्यु हो गई.